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खुशबू की कहानी | Village Girl Story for Kids

Village Girl Story for Kids: एक छोटे से गाँव में नंदराम अपनी पत्नी सुनंदा और प्यारी बेटी खुशबू के साथ रहता था। नंदराम के पास एक छोटा सा खेत था, जहाँ वह खेती-बाड़ी करता और वहीं पास में बनी एक झोपड़ी में उनका परिवार रहता।

रात को तीनों आँगन में चारपाई बिछाकर सोते थे। खुशबू अक्सर अपनी माँ से बातें किया करती थी। एक रात वह माँ से पूछने लगी, “माँ, हमारे घर में बिजली क्यों नहीं है? बाकी घरों में तो है।”

सुनंदा ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटी, एक दिन हमारा भी पक्का मकान होगा और उसमें बिजली भी होगी। लेकिन सोचो, अभी तो हम दिन में सारे काम निपटा लेते हैं, रात जल्दी सो जाते हैं, और इससे हमारी सेहत भी अच्छी रहती है। और जब बिजली नहीं है, तो देखो, यह चाँद अपनी रोशनी से हमारे घर को कितना रोशन कर देता है। जब भी तुम चाँद देखोगी, मेरी बातें याद रखना।”

समय बीतता गया। एक दिन सुनंदा की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई और उन्हें बचाया नहीं जा सका। नंदराम और खुशबू के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। नंदराम ने गाँव छोड़कर शहर जाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी झोपड़ी और खेत बेच दिए, और शहर में एक छोटी-सी दुकान खोल ली। वहाँ खुशबू का दाखिला स्कूल में करवाया और दोनों ने अपने नए जीवन की शुरुआत की।

खुशबू पढ़ाई में बहुत होशियार थी। स्कूल के बाद वह घर का खाना बनाकर अपने पिता को दुकान पर दे आती, और दोनों मिलकर साथ खाना खाते। दिन बीतते गए, और खुशबू ने अपनी मेहनत से डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर ली। उसे एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल गई।

एक दिन, खुशबू अपने पिता के पास आई और उत्साह से बोली, “पिताजी, मुझे हमारे पुराने गाँव में नौकरी मिल गई है! अब हम वापस गाँव चलेंगे।”

नंदराम ने थोड़े संकोच के साथ कहा, “बेटी, वहाँ अब क्या बचा है? तेरी माँ के जाने के बाद मेरा मन वहाँ बिल्कुल नहीं लगता।”

खुशबू ने जवाब दिया, “माँ की बहुत याद आती है पिताजी। चलिए, अपने पुराने घर को एक बार फिर देख आते हैं। क्या पता, हम उसे फिर से खरीद सकें। माँ की यादें उस घर से जुड़ी हैं।”

आखिरकार, नंदराम मान गए और दोनों गाँव लौट आए। वहाँ पहुँचकर खुशबू ने पुराने घर को महंगी कीमत पर खरीद लिया और उसे पक्का मकान बनवाया। अब घर में बिजली भी आ चुकी थी।

नंदराम ने फिर से खेत खरीदा और मजदूरों से खेती करवाने लगे। एक शाम नंदराम ने देखा कि खुशबू आँगन में चारपाई बिछा रही थी।

नंदराम ने पूछा, “बेटी, अंदर सो जा, यहाँ तो पंखा भी नहीं है।”

खुशबू ने हँसते हुए कहा, “पिताजी, जब इस चाँदनी की रोशनी मुझ पर पड़ती है, तो ऐसा लगता है जैसे माँ मुझे सहला रही हो। यही तो वह रोशनी है, जो हमेशा मेरे साथ रहती है।”

कुछ ही दिनों में गाँव में खुशबू और नंदराम की खुशहाल जिंदगी की खबरें फैल गईं। पास के गाँव के एक जमींदार ने अपने बेटे के लिए खुशबू का हाथ माँगा। नंदराम ने खुशबू से पूछा और उसने भी खुश होकर इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी।

जब शादी के बाद खुशबू विदा हो रही थी, तो उसने पिता से कहा, “पिताजी, मेरी चारपाई यहीं आँगन में रखना। जब भी मैं आऊँगी, माँ की चाँदनी के नीचे यहीं सोऊँगी।”

यह सुनकर नंदराम की आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने धीरे से कहा, “हाँ बेटी, मुझे भी लगता है, जैसे तेरी माँ तेरा इंतज़ार करती है।”

इस तरह, खुशबू ने अपने सपनों को पूरा किया, अपनी माँ की यादों को संजोए रखा, और एक प्यारी बेटी की तरह अपने पिता की हमेशा खुशियाँ बँटाती रही।

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