
99% लोग इस गलती को सच मानते हैं, बाबा जी ने बताया सच!
साथ संगत जी, आज हम आपको ऐसी बातें बताएंगे, जिन्हें 99% लोग सच मानते हैं और अपने जीवन में अपनाए हुए हैं। अक्सर हम बिना सोचे-समझे परंपराओं को निभाते चले जाते हैं, क्योंकि हमें बचपन से यही सिखाया गया है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन मान्यताओं के पीछे की सच्चाई क्या है?
बाबा जी कभी किसी को किसी भी परंपरा को निभाने से मना नहीं करते, लेकिन वे हमेशा हमें इसके पीछे का सही कारण और तर्क भी समझाते हैं। हमें वहम और अंधविश्वास से बचाकर सच्चाई की राह दिखाते हैं।
आज की यह साखी आपके सोचने का नजरिया बदल देगी। पूरा सत्संग ध्यान से सुनिए, क्योंकि इसमें बाबा जी ने बताया है कि हम किस भ्रम में जी रहे हैं और असल में हमें क्या करना चाहिए!
क्या सच में हमारे पूर्वजों को श्राद्ध से भोजन मिलता है?
क्या कौवे को रोटी खिलाने से हमारे पितर तृप्त होते हैं?
आपने भी कई बार सुना होगा “अरे, आज श्राद्ध है, ब्राह्मणों को भोजन करवा दो।””कौवे को रोटी डाल दो, वरना पूर्वज भूखे रह जाएंगे।”
लेकिन क्या यह सच है? या फिर यह केवल एक पुरानी परंपरा है, जिसे हमने बिना सोचे-समझे अपनाया हुआ है? आज बाबा जी ने इस गहरी सच्चाई से पर्दा उठाया, जिसे जानकर आपका मन भी सोचने पर मजबूर हो जाएगा।
बाबा जी की साखी, एक सेवादार की सीख
एक दिन डेरे में मिट्टी की सेवा चल रही थी। सभी सेवादार बड़े प्रेम से सेवा कर रहे थे। तभी अनाउंसमेंट हुई “बाबा जी दर्शन देने आ रहे हैं!”
सभी सेवादार खुशी-खुशी लाइन में बैठ गए। कुछ ही देर में बाबा जी आए और प्रेम से सभी को निहारा। लेकिन तभी एक सेवादार हांफता हुआ दौड़ते हुए आया और सबसे पीछे बैठ गया।
बाबा जी मुस्कुराए और बोले “आज लेट कैसे हो गए, भाई?”
सेवादार सिर झुकाकर बोला “बाबा जी, आज मेरी मां का श्राद्ध था। घर में पूजा रखवाई थी, पांच ब्राह्मणों को भोजन करवाया था, इसलिए देर हो गई।”
क्या सच में पूर्वजों तक रोटी पहुंचती है?
बाबा जी हंस पड़े और बोले “भाई, ये बताओ, तुमने ब्राह्मणों को भोजन करवाया, कौवे को रोटी खिलाई… लेकिन क्या सच में तुम्हारी मां तक वो रोटी पहुंच गई?”
सेवादार असमंजस में पड़ गया। धीरे से बोला “बाबा जी, हमें तो यही बताया गया है।”
बाबा जी बोले “अगर तुम्हारी मां तक रोटी पहुंच सकती है, तो फिर ऐसा क्यों नहीं होता कि जब तुम यहां लंगर खाते हो, तब घर बैठे तुम्हारे परिवार का पेट भी भर जाए?”
संगत सुनकर हैरान रह गई। बाबा जी ने आगे कहा “भाई, भूख शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। जब शरीर ही मिट्टी में मिल गया, तो फिर उसे रोटी की क्या जरूरत?”
संत जी की सीख पानी से भरे खेत?
इसके बाद बाबा जी ने संत जी की एक ऐतिहासिक साखी सुनाई
एक बार संत जी और संत जी का सेवक हरिद्वार पहुंचे। वहां देखा कि लोग गंगा में खड़े होकर पूर्व दिशा की ओर जल चढ़ा रहे थे।
संत जी ने पूछा “भाई, ये क्या कर रहे हो?”
पंडित बोला “अपने पितरों को पानी भेज रहे हैं, ताकि वे तृप्त रहें।”
संत जी मुस्कुराए। वे भी गंगा में उतरे और पश्चिम दिशा की ओर पानी डालने लगे।
लोग चौंक गए “अरे! तुम गलत दिशा में पानी क्यों डाल रहे हो?”
संत जी बोले “मेरे खेत पश्चिम में हैं, वहां सूखा पड़ा है, मैं अपने खेतों को पानी दे रहा हूं।”
लोग हंसने लगे “अरे, ऐसे कैसे पानी खेतों तक पहुंचेगा?”
संत जी गंभीर होकर बोले “जब तुम्हारा पानी स्वर्ग में बैठे पूर्वजों तक पहुंच सकता है, तो मेरा पानी मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुंच सकता?”
यह सुनकर सबकी आंखें खुल गईं।
बाबा जी का संदेश जीते जी सेवा करो!
बाबा जी ने सेवादार को प्रेम से समझाया “भाई, जीते जी माता-पिता की सेवा करोगे, तो श्राद्ध करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अगर तुम उनके सामने एक रोटी भी प्रेम से खिलाओगे, तो वो सच्चा श्राद्ध होगा।”
“मरने के बाद चाहे सौ ब्राह्मणों को खिला दो, हजार कौवों को रोटी डाल दो, लेकिन वो प्यार और सेवा नहीं दे सकते, जो तुम उनके जीते जी कर सकते थे।”
तो क्या हमें श्राद्ध नहीं करना चाहिए?
बाबा जी ने स्पष्ट किया “भोजन करवाना गलत नहीं है, लेकिन यह मत सोचो कि इससे आत्मा तक भोजन पहुंचेगा।”
“अगर सच में श्राद्ध से आत्मा को तृप्ति मिलती, तो सबसे पहले अमीर लोग कभी भूखे न मरते। उनके पास इतना धन है कि हर दिन हजारों ब्राह्मणों को खिला सकते हैं, फिर भी वे दु:खी क्यों होते हैं?”
“असल पुण्य यह है कि अपने माता-पिता की सेवा करो जब वे जीवित हों, उनसे प्रेम करो, उनकी इच्छाओं का सम्मान करो। यही सच्चा सत्संग है!”
हमारे वहम हमें कहां ले जाते हैं?
बाबा जी ने आगे कहा “हम सत्संग में सिर हिलाते हैं, लेकिन घर पहुंचते ही फिर से पाखंड में उलझ जाते हैं। आज मंगलवार है, दूध मत दो। आज वीरवार है, नाखून मत काटो। आज अमावस्या है, बाल मत धोओ!”
“भाई, अगर ये सच होता, तो पूरी दुनिया में सिर्फ वही लोग सफल होते, जो इन रीति-रिवाजों को मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। जो मेहनत करता है, जो सच्चे मन से सेवा करता है, उसे ही फल मिलता है।”
बाबा जी की अंतिम सीख
संगत जी, बाबा जी हमें बार-बार यही समझाते हैं भजन-सुमिरन को सबसे ऊपर रखो। जीते जी सेवा करो, तभी सच्चा पुण्य मिलेगा। अंधविश्वास और पाखंड से दूर रहो।
अगर यह संदेश आपके दिल को छू गया हो, तो इसे आगे जरूर बढ़ाएं। बाबा जी की प्यारी-प्यारी साखियों को सुनने के लिए इस चैनल रूहानी खज़ाना को सब्सक्राइब करना न भूलें।
गुरु प्यारी संगत जी राधा स्वामी जी!