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चाचाजी की आइसक्रीम | Family Moral Story In Hindi

Family Moral Story In Hindi कुशल जब घर से बाहर निकला, तो देखा कि सामने रमेश चाचा खड़े थे। उन्होंने चाचा को देखा और उनके पास जाकर खड़ा हो गया।

कुशल: “चाचा जी, आज कहाँ चलना है?”

लेकिन रमेश चाचा बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए। कुशल निराश होकर घर लौट आया।

कुशल: “मम्मी, चाचा मुझसे बात क्यों नहीं करते?”

संगीता: “बेटा, तेरे पापा और चाचा के बीच जायदाद को लेकर कहासुनी हो गई है। हम लोग अब उनसे कोई संपर्क नहीं रखते।”

कुशल: “लेकिन चाचा तो बहुत अच्छे हैं, हमेशा मुझे स्कूल से लाते थे और आईस्क्रीम दिलवाते थे। अब ऐसा क्या हो गया?”

संगीता: “मैंने कहा है न, उनसे बात मत किया कर, नहीं तो तेरे पापा नाराज हो जाएंगे।”

रघुनाथ जी और रमेश दोनों भाई थे। दोनों की मार्केट में कपड़े की दुकान थी। पिताजी के निधन के बाद, रघुनाथ जी और रमेश ने मिलकर दुकान चलानी शुरू की। रघुनाथ जी और संगीता ने रमेश को अपने परिवार का हिस्सा मान लिया और उसकी शादी भी करवाई। लेकिन शादी के बाद, रमेश का व्यवहार बदल गया। वह दुकान से अक्सर गायब रहता और ज्यादा पैसे ले लेता था।

रघुनाथ जी ने कभी हिसाब नहीं रखा, लेकिन धीरे-धीरे दुकान में घाटा होने लगा। जब रघुनाथ जी ने पता किया, तो पता चला कि रमेश ज्यादा पैसे ले रहा था।

रघुनाथ जी: “रमेश, जब हम महीने के अंत में बराबर पैसे लेते हैं, तो तुम कैसे अतिरिक्त पैसे ले सकते हो?”

रमेश: “भैया, मेरी शादी हो गई है। मुझे पैसे की जरूरत थी, तो मैंने ले लिया। क्या अब हर चीज के लिए आपसे पूछना पड़ेगा?”

रघुनाथ जी ने घर की शांति बनाए रखने के लिए चुप्पी साध ली। कुछ दिनों बाद, रमेश ने उसी मार्केट में अपनी अलग दुकान खोल ली। रघुनाथ जी और संगीता इस बात से बहुत दुखी थे कि रमेश ने बिना बताए ये सब किया।

रघुनाथ जी: “तू अलग दुकान खोलना चाहता था, तो मुझे बताता। मैं तेरी दुकान खुलवा देता। अब तुझे कर्ज लेना पड़ा है, कैसे चुकाएगा?”

रमेश: “आप मेरा हिस्सा दे दीजिए, उससे मैं अपना कर्ज चुका लूंगा। अब मैं आपके साथ नहीं रहना चाहता।”

रघुनाथ जी को यह सुनकर बड़ा झटका लगा। उन्होंने कहा:

रघुनाथ जी: “अगर तुझे हिस्सा चाहिए, तो ले ले। लेकिन जिस तरह से तू हमारे साथ परायों की तरह व्यवहार कर रहा है, यह ठीक नहीं है।”

रमेश: “तो क्या, जिंदगी भर आपका गुलाम बनकर रहूं?”

उस दिन के बाद, दोनों भाईयों में खटास आ गई। रघुनाथ जी ने किसी तरह रमेश के हिस्से की रकम उसे दे दी, और रमेश अपनी पत्नी रमा के साथ किराये के मकान में चले गए।

इन घटनाओं से कुशल को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह आज भी अपने चाचा के साथ उसी प्यार की उम्मीद कर रहा था। एक दिन कुशल की तबियत खराब हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। महीनों तक कुशल का इलाज चलता रहा और उसकी हालत काफी बिगड़ गई।

रघुनाथ जी बहुत परेशान थे। एक दिन जब वह कुशल के लिए दवाई खरीद रहे थे, तभी रमेश वहां से गुजरा। उसने दुकानदार से पूछा और फिर सीधे अस्पताल पहुंच गया। उसने अपने भाई और डॉक्टर की बातें सुनीं।

डॉक्टर: “देखिए, आपके बेटे का ऑपरेशन करना बहुत जरूरी है। आप समझते क्यों नहीं?”

रघुनाथ: “डॉक्टर साहब, मैं पैसों का इंतजाम कर रहा हूं, लेकिन इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करने में कुछ समय लगेगा। मैंने अपनी दुकान और घर दोनों गिरवी रख दिए हैं। दो दिन में पैसे आ जाएंगे।”

डॉक्टर: “जो कुछ करना है जल्दी करो। नहीं तो पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।”

तभी रमेश आगे आया:

रमेश: “भैया, इतना सब हो गया और आपने मुझे बताया नहीं।”

रघुनाथ जी: “पता नहीं भाग्य में क्या लिखा है। तू कुशल से मिल ले, उसे अच्छा लगेगा।”

रमेश जल्दी से कमरे में गया:

रमेश: “क्यों छोटे मास्टर, चाचा को भूल गए? अब आईस्क्रीम नहीं खानी?”

कुशल चाचा को देखकर खुश हो गया और संगीता की आंखों से आंसू बहने लगे।

रमेश: “चिंता मत करो भाभी, सब ठीक हो जाएगा।”

यह कहकर वह चला गया। अगले दिन, डॉक्टर ने बताया कि आज ही कुशल का ऑपरेशन किया जाएगा।

रघुनाथ जी: “डॉक्टर साहब, अभी पैसों का इंतजाम नहीं हुआ है।”

डॉक्टर: “क्या? लेकिन आपके पैसे तो जमा हो गए हैं।”

रघुनाथ जी सोच रहे थे तभी उनके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। रघुनाथ जी ने पलटकर देखा तो रमेश और रमा खड़े थे।

रमेश: “चिंता मत करो भैया, कुशल बिल्कुल ठीक हो जाएगा। मैंने अपनी दुकान बेच दी है। आज सुबह ही पैसे मिले, और मैं रमा को लेकर यहां आया।”

रघुनाथ जी की आंखों में आंसू थे।

रघुनाथ जी: “पगले, ये क्या किया? अब बिना दुकान के तू क्या करेगा?”

रमेश: “कुछ भी कर लूंगा भैया, लेकिन अपने बेटे को तड़पते नहीं देख सकता।”

रघुनाथ जी: “फिर भी, तेरी दुकान है, दोनों भाई वहीं बैठेंगे।”

दोनों भाई गले लग गए। यह देख रमा और संगीता की आंखें भी नम हो गईं।

कुशल का ऑपरेशन सफल रहा और वह जल्द ही घर आ गया। रघुनाथ जी ने कहा:

रघुनाथ जी: “रमेश, अब भी अलग रहेगा मुझसे? जाकर अपना सामान ले आ, हम सब साथ में रहेंगे।”

रमेश: “लेकिन भैया, मैंने तो अपना हिस्सा ले लिया है, सब कर्ज में चुका दिया।”

रघुनाथ जी: “पगले, तू भी मेरे ही हिस्से में है। छोड़ ये सब, चुपचाप जाकर सामान ले आ।”

अब कुशल हर दिन अपने चाचा के साथ स्कूल जाता और वापस आते समय दोनों आईस्क्रीम खाते।

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