Little Boy Emotional Story :राघव आठवीं कक्षा में पढ़ता था। एक दिन, जब वह स्कूल से घर पहुंचा, तो उसने देखा कि उसकी मां, सुनीता, बेहद उदास थीं और चुपचाप आँसू बहा रही थीं।
राघव: “मां, आप क्यों रो रही हैं? क्या हुआ?”
सुनीता का चेहरा दर्द से भरा हुआ था। उसके पति, राजेश, दो साल पहले काम के सिलसिले में मुंबई गए थे। शुरुआत में वे फोन करते थे और पैसे भेजते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनका संपर्क कम होता गया। आज सुबह जब सुनीता ने उन्हें फोन किया, तो राजेश ने कहा:
राजेश: “अब मैं तुम दोनों से कोई संबंध नहीं रखना चाहता। मैंने यहीं अपना जीवन बनाने का फैसला कर लिया है। अब कभी मुझसे संपर्क मत करना।”
यह सुनकर सुनीता का दिल टूट गया था, और वह सुबह से ही रो रही थी।
राघव ने अपनी मां की तरफ देखा और कहा, “मां, आप चिंता मत करो। मैं कुछ काम ढूंढ लूंगा। हम अपना घर संभाल लेंगे। हमें किसी और की जरूरत नहीं है।”
राजेश के इस व्यवहार ने राघव के दिल में उसके लिए कड़वाहट भर दी थी। लेकिन वह अपनी मां को दिलासा देने के लिए मजबूत बनने की कोशिश कर रहा था।
सुनीता: “बेटा, तुझे पढ़ाई करनी चाहिए। मैं नहीं चाहती कि तेरी पढ़ाई छूटे। तुझे एक दिन बड़ा आदमी बनना है।”
राघव: “मां, पढ़ाई से पहले हमें घर का खर्च चलाना होगा। आप क्या करेंगी? आपको तो घर के बाहर कोई जानता तक नहीं। मैं काम करूंगा और शाम को पढ़ाई भी कर लूंगा।”
अगले दिन से राघव ने काम की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कई दिन तक उसे कोई काम नहीं मिला। उधर, सुनीता भी अपने बेटे के जाने के बाद काम ढूंढने निकलीं, लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी।
एक दिन, राघव भूखा-प्यासा एक चाय की दुकान के पास पहुंचा और दुकानदार से कहा, “भैया, मुझे एक चाय दे दो, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। मैं भूखा हूं। शाम तक मैं आपकी दुकान पर काम कर दूंगा।”
दुकानदार ने उसे देखा और कहा, “भूख लगी है, तो चाय क्यों मांग रहे हो? खाना क्यों नहीं?”
राघव: “मेरे पास खाने के पैसे नहीं हैं। चाय से पेट भर जाएगा।”
दुकानदार को उसकी हालत देखकर दया आ गई और उसने उसे चाय के साथ पाव भी खाने को दे दिया। राघव ने खाना खाया और दुकानदार से कहा, “अब बताइए, क्या काम करना है? मैं आपकी मदद करूंगा।”
दुकानदार: “बेटा, हम छोटे बच्चों से काम नहीं करवा सकते। किसी ने देख लिया, तो परेशानी हो जाएगी।”
राघव: “लेकिन मैंने आपकी चाय पी है, उसके पैसे तो चुकाने होंगे।”
दुकानदार: “जब पैसे हों, दे जाना।”
राघव: “नहीं, मैं अभी कोई काम करना चाहता हूं।”
दुकानदार ने थोड़ी देर सोचा और कहा, “अच्छा, एक काम कर। बड़े चौक पर एक बेकरी है, वहां से मुझे पाव ला दे। ये पैसे और मेरी साइकिल ले जा।”
राघव पैसे और साइकिल लेकर बेकरी पहुंचा और पाव लेकर वापस आया। वहीं बेकरी वाला उससे बोला, “तू मेरे पाव दूसरी दुकानों पर भी पहुंचा सकता है। मैं तुझे कमीशन दूंगा। साइकिल भी दे दूंगा।”
राघव ने बेकरी वाले की बात मान ली और धीरे-धीरे काम शुरू कर दिया। उसने मेहनत और ईमानदारी से पाव की डिलीवरी की, और उसके काम से बेकरी वाले का कारोबार भी बढ़ने लगा। धीरे-धीरे राघव के पास इतना काम हो गया कि वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ घर का खर्च भी संभालने लगा।
कुछ समय बाद, सुनीता को भी एक घर में खाना बनाने का काम मिल गया। मां-बेटे दोनों की मेहनत रंग लाने लगी। आठ साल बाद, राघव ने अपनी खुद की बेकरी खोल ली थी, और कई लड़के उसकी दुकान पर काम करने लगे। अब वह अपनी मां का पूरा ख्याल रखता था, और उसने सुनीता का काम छुड़वा दिया था।
कुछ समय बाद, सुनीता ने राघव की शादी एक अच्छी लड़की से करा दी। पूरा परिवार अब खुशहाल जीवन बिता रहा था।
एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई। सुनीता ने दरवाजा खोला और सामने राजेश खड़े थे। उन्हें देखकर सुनीता हैरान रह गई। राजेश के कपड़े पुराने और गंदे थे, उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, और वह कमजोर दिख रहे थे।
सुनीता: “अब आप क्यों आए हैं?”
राजेश फूट-फूट कर रोने लगे और बोले, “मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत गलतियां की हैं। वहां मैंने दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन वह भी मुझे छोड़कर चली गई। अब मेरे पास कुछ नहीं बचा।”
सुनीता ने ठंडे स्वर में कहा, “आपके कारण हमारे बेटे ने कितनी तकलीफें झेली हैं। मैं आपको माफ कर सकती हूं, लेकिन राघव नहीं करेगा।”
शाम को जब राघव घर आया, तो उसे सारी बात बताई गई। उसने कुछ देर सोचकर कहा, “मां, आप इन्हें बाहर के कमरे में ठहरा सकती हैं, लेकिन हम इनसे कोई संबंध नहीं रखेंगे।”
राजेश को घर में एक अलग कमरे में रखा गया। वह हर दिन अपने किए पर पछताते रहे, लेकिन राघव ने उनसे कभी बात नहीं की। कुछ महीनों बाद, एक सुबह, राजेश का निधन हो गया।
राघव ने अपने पिता को अंतिम विदाई दी, लेकिन उसके दिल में उनके लिए कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं बचा था।
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